अविजीत घोष पिछले 18 सालों से पत्रकारिता में है। इन दिनों टाइम्स आफ इंडिया से जुड़े हैं। कभी कविता लिखने का शौक था। अब उपन्यास लिखने की चाहत है। अंग्रेजी में एक लिखा भी है। नाम है-bandicoots in the moonlight. कोशिश है कि इसका हिंदी अनुवाद भी हो।
इन दिनों भोजपुरी फिल्मों पर किताब लिखने की कोशिश कर रहे हैं। मेरे नुक्कड़ पर इनका स्वागत है। उनकी ताजा कविता पढिए..
बैठा रहा चांद
चबूतरे के करीब
कोई सिहरन कुरेदती रही
रीढ की हड्डी धीरे धीरे
उतार ना सका
तुम्हारे गंध के केंचुल को किसी तरह
तुम बहती रही रात भर
धमनियों में धीरे धीरे