इरा का पत्र अन्नू के नाम

Posted By Geetashree On 2:25 AM 2 comments
हमारे पेशे की ये चंद कड़वी सच्चाईयां हैं. पर इनमें भटकते हुए मैंने अपना जज्बा नहीं खोया. बल्कि हर घटना ने लड़ने और जूझने का मेरा हौसला बढाया. मेरी तो पूरी उम्र खांटी पत्रकारिता की इन्हीं गलियों में गुजर गई, वह भी पूरी ठसक के साथ. पर कब तक सुशीला बन कर घर के पोतड़े छिपाती रहूं. ये सच्चाईयां रअसल उन मानवियों लिए है जो दुनियाभर की औरतों का दर्द बयान करने का जज्बा लेकर पत्रकारिता की दहलीज में कदम रखने को बेकरार है. मेरी हैसियत इस परिवार के बुजुर्ग जैसी हो गई है. इस नाते उन्हें इस पेशे के लिए मानसिक तौर पर तैयार करना मेरा फर्ज है. कमसेकम मैं एसा मानती हूं. हिंदी न्यूज रुम की पेचिदगियों से और साथिनें शायद मेरे जितनी वाकिफ ना हों. मैंने तो इस जिंदगी को जिया है. पत्रकारिता के इस सागर में मैं डूबते उतराते आज भी तैर रही हूं. इस पेशे की तहों का अंदाज है. जहां तक दीगर पेशे में महिलाओं के संघर्ष की बात है, हम तुम गीता, नीलम, पारुल, सभी ने सच्चाईयों को अपनी कलम से आवाज दे रही हैं. अफसोस इस बात का है कि विचार और अभिव्यक्ति की आजादी के पेशे में हम सभी को यही झेलना पड़ रहा है. अब और नहीं. मत बनी रहो रानी बेटी. सुनाओ देश भर को इस पेशे की दास्तान...। इससे नयी मानवियों के लिए राह बनेगी. वैसे यह लेख मैंने फकत गीताश्री की किताब के लिए लिखा था. संदर्भ कुछ और था. पत्रकारिता की पेचिदगियों पर तो महाग्रंथ लिख सकती हूं. इतना बड़ा अनुभव संसार है.. इस राह पर और ना जाने कितने लोग बेनकाब हो जाएंगे. बस उन्ही की खातिर कलम ठहरी हुई है. पर उसका भी समय आएगा....जल्दी.