आज फिर जीने की तमन्ना है

Posted By Geetashree On 8:48 AM 10 comments

हिंदी सिनेमा के किन किन गानो में स्त्री मुक्ति की ध्वनि आती है..ये इन दिनों मेरे शोध का विषय बन गया है.ये दिलचस्पी जगाने वाले कथाकार मित्र तेजिंदर शर्मा हैं. उन्होने ये नहीं सोचा होगा कि बहस इस दिशा में भी मुड़ सकती है. अब आप किसी मुक्तिकामी स्त्री से बहस करेंगे तो संभव है कि बहस वहां तक जाएगी. वे हमें बता रहे थे कि जिन गानों की धुने अच्छी होती हैं उनके बोल पर कोई ध्यान नहीं देता, वो अननोटिसड रह जाते हैं.

जैसे 1965 में आई 'गाइड' फिल्म का गाना सुनें...कांटो से खींच के ये आंचल...तोड़ के बंधन बांधी पायल...कोई ना रोको दिल की उड़ान को...दिल वो चला..। मैंने मित्रवर को वहीं रोका...अरे हां..मैंने भी कभी गौर नहीं किया था...ये तो स्त्री मुक्ति का गान है...संभवत पहला गाना. शैलेंद्र आज से 40 साल पहले जो कुछ रच रहे थे, वह महज गीत भर कहां था ! "सजन रे झुठ मत बोलो" लिखने वाले शैलेंद्र यहां दर्शन का एक ऐसा संसार रच रहे थे, जो अब तक अपने यहां अलक्षित किया गया था. विवाहेत्तर संबंध तो हमने देखा था और एक धनाढय, विवाहित नायिका का एक कुंवारे गाइड के साथ रोमांस भी...अपने नपुंसक पति को वो अंधेरे से बाहर आने जैसा मानती है और गाने में आगे गाती है..कल के अंधेरों से निकल के, देखा है आंखें मलते मलते, फूल ही फूल, जिंदगी बहार है...तय कर लिया....।
पहले तो नायिका कांटों से अपने आंचल को खींच निकालती है और बंधन वहीं झनझना कर टूट जाते हैं. बंधन तोड़ती है, सायास और अपने पांव में फिर से पायल बांध लेती है...इसके बाद उसकी जिंदगी में उड़ान ही उड़ान है...एक स्त्री की उड़ान है..सामाजिक, पारिवारिक बंधनों से मुक्ति की उड़ान...इसके बाद उसकी इच्छाओं का नीला आकाश है, सीमाहीन..एक ऐसे पुरुष का साथ है, जिसे वह अपनी मर्जी से चुनती है. 
सच कहूं, आज पहली बार मुझे पायल थोड़ी ठीक लगी. मैं अब तक उसे गुलामी, बेड़ी के प्रतीक के तौर पर देखती थी, उसकी खनक से भी मुझे गुलामी की धुन सुनाई देती थी. पायल के खिलाफ मेरी आवाज दोस्तों को अक्सर सुनाई देती रही है. स्त्री के पांव में बेड़ी कितनी लयात्मक हो सकती है, मैं सोचती. मेरी राय बदल गई. आज से उसे उड़ान का प्रस्थान बिंदू और आजादी की लय मानूंगी.
नायिका की मनस्थिति की कल्पना कर रही हूं. जिसे हर गूंज में फिर से जीने मरने की तमन्ना सुनाई देती है..। तय कर लिया है...मुक्ति के रस्ते में जिंदगी बहार है, इसके लिए कांटो से दामन छुड़ाना जरुरी है. इन कांटों के बारे में और स्त्री मक्ति के और गानों के बारे में कुछ और बातें अगले पोस्ट में..तब तक मेरी खोज जारी है.