अपने आसन से वंचित देवता की चीखें

Posted By Geetashree On 2:04 AM 14 comments

सभी दोस्तो के नाम....ये किसी एक को संबोधित नहीं है। ना ही मेरा व्यक्तिगत प्रलाप है। मेरे लेखों का मेरी निजी जिंदगी की झुंझलाहट से क्या लेना देना..मेरे बारे में बताने के लिए ब्लाग में दिया गया परिचय और मेरा पेशा ही काफी है। मैं जागरुक पत्रकार हूं, आजाद ख्याल स्त्री हूं..सजग हूं..नागरिक हूं..अपने आसपास हो रही घटनाओ पर पैनी निगाह रखती हूं...। मेरी राय कोई अंतिम सच नहीं,,असहमति जताई जा सकती है, मगर दायरे में रह कर। मुनवादी व्यवस्था की धज्जियां उड़ चुकी हैं। आधुनिक समाज का उनसे कोई लेना देना नहीं...मगर अभी भी जहां ये लागू है मैं उस पर चोट करती हूं तो कुछ लोगो की चीख निकल जाती हैं। क्यों, ये मनुबाबा जानें, जिन्हे लोग भगवान मानने का भ्रम पाले बैठे हैं।

जिसे लोग मनु भगवान कहते हैं और जिनकी मनु-स्मृति से कुछ उदाहरण उठाए गए हैं स्त्रियों का मुंह बंद कराने के लिए..मैं उसी में से कुछ नायाब मोती चुन चुन कर आज पेश करने जा रही हूं..उम्मीद है मनु बाबा के अनुयायी इससे इनकार नहीं करेंगे। आखिर मनु भगवान लिखित दस्तावेज जो सौंप गए है..तो सुनिए...
मनु ने स्त्रियों के संबंध में जो व्यवस्था दी है उसे आगे चलकर याज्ञवल्क्य, अत्रि, वशिष्ठ, विष्णु, कण्व, गौतम, प्रजापति, बोधायन, गोभिल, नारद, प्रचेता, जाबालि, शौनक, उपमन्यु, दक्ष, कश्यप, शांदिल्य, कात्यायन, पराशर आदि आदि सभी स्मृतिकारों ने समर्थन किया है। मनु के अनुसार स्त्रियों के कोई भी संस्कार वेदमंत्र द्वारा नहीं होते , क्योंकि इन्हें श्रुति-स्मृति का अधिकार नहीं है। ये निरेंद्रियां(ज्ञानेंद्रिय विहीन यानी अज्ञान), अमंत्रा,(पाप दूर करने वाले जप-मंत्रों से रहित) हैं। इनकी स्थिति ही अनृत अर्थात मिथ्या है। मलतब ये कि स्त्री की अपनी स्वतंत्र सत्ता या स्वतंत्र स्थिति है ही नहीं। (शलोक न.24)
अगला देखें...स्त्रियों के लिए पृथक कोई यज्ञ नहीं है न व्रत है, न उपवास। केवल पति की सेवा से ही उसे स्वर्ग मिलता है। जप, तपस्या, तीर्थ,-यात्रा, संन्यास-ग्रहण, मंत्र-साधन और देवताओं की आराधना इन छह कर्मो को करने से स्त्री और शूद्र पतित हो जाते हैं।
जिस स्त्री की तीर्थ में स्नान करने की इच्छा हो उसे अपने पति का चरणोदक पीना चाहिए। (25-26-27)
मनु के अनुसार स्त्री को स्वतंत्रता का अधिकार नहीं। उसे कौमार्यावस्था में पिता के, युवावस्था में पति के और वृदावस्था में पुत्र के अधीन रहना चाहिए।(28)
मनु के अनुसार स्त्री का पति दुशील,कामी, तथा सभी गुणों से रहित हो तो भी एक साध्वी स्त्री को उसकी सदा देवता के समान सेवा व पूजा करनी चाहिए। (5/154)
लेकिन एसी स्त्रियों के लिए मनु का सुझाव है---अपराध करने पर स्त्री को रस्सी या बांस के खप्पचे से पीटना चाहिए। (35)
पति के मर जाने पर स्त्री यदि चाहे तो केवल पुष्पो, फलो एवं मूलो को ही खाकर अपने शरीर को गला दे। किंतु उसे किसी अन्य व्यक्ति का नाम भी नहीं लेना चाहिए। मृत्युपर्यन्त उसे संयम रखना चाहिए, व्रत रखने चाहिए, सतीत्व की रक्षा करनी चाहिए और पतिव्रता के सदाचरण एवं गुणों की प्राप्ति की आकांक्षा करनी चाहिए। (5/157-160)

देखिए...मनु-समृति भरा पड़ा है..स्त्रीविरोधी श्लोको से...कितना उदाहरण दूं। मैं यहां मनु-समृति का पुनर्लेखन या पुर्नपाठ नहीं करना चाहती। जिसे पढ कर उबकाई आए, खून खौले और जिसकी प्रतियां जला देने का मन करें उसके बारे में लंबी चर्चा कैसे करुं। मुझे मजबूरन इतना अंश यहां डालना पड़ा क्योंकि प्रतिक्रिया में कई अनुकूल श्लोको का उदाहरण दिया गया है। मैं तो गड़े मुर्दे उखाड़ना नहीं चाहती थी। ना ही इतिहास के बोझ से दबी हुई स्त्री की हिमायती हूं। हमने सारे बोझ उतार फेंके हैं। मैंने अपने पोस्ट में जरा सी ज्रिक भर किया था कि लोग बाग तिलमिला उठे। मैंने छुआ भर...याद दिलाने के लिए। मनु-स्मृति स्त्री और दलितों के एसे कमजोर नस को छूता है कि चर्चा भर से आग भभक उठती है। आप जिसे भगवान कहते हैं, हम उसे घोर-स्त्री विरोधी मानते हैं, दलित विरोधी भी। यहां हमारी लड़ाई एकसी हो जाती है। हमारी नजर में ये कथित हिंदुवादियों का वो भगवान है जो अपने आसन से चूक गया। अब उसके लिखे की कौन परवाह करे। मनु-व्यवस्था को ठेंगा दिखाती हुई स्त्रियां हजम नहीं हो रही हैं इन्हे। क्या करें..।

अब बात कर लें उन श्लोको की जिनके सहारे हिंदू समाज अपनी पीठ थपथपाता है। जिनका हवाला प्रवीण जी ने दिया है और बाकी पुरुष साथियों का वाहवाही लूटी है। ताली बजाने से पहले बेहतर होता कि अपने भगवान की कृति पढ लेते। जिस पर हिंदू समाज ताली बजाता है उसकासच क्या है जानना चाहेंगे। बताती हूं...किसी पुरुष लेखक के लेखन के हवाले से..। डां अमरनाथ स्त्रीवादी लेखक है..उनका शोध ग्रंथ है--नारी का मुक्ति-संर्घष। उसमें वे मनु बाबा के सबसे ताली बजाऊ और चर्चित श्लोक, जिसमें मनु ने लिखा है, जहां नारियो की पूजा होती है वहां देवता निवास....। इसकी कलई खोलते हुए अमरनाथ लिखते हैं...यह एकमात्र श्लोक है जिसे मनु ने ना जाने किस मनस्थिति में लिखा था और जिसके बल पर धर्मभीरु हिंदूसमाज अपने अतीत पर गर्व करता है। इसकी पृष्ठभूमि पर विचार करना जरुरी है। मनु ने (9/5-9, 9/10-12) स्त्री रक्षा की कई बार चर्चा की है और कहा है कि स्त्री को वश में रखना शक्ति से संभव नहीं है, उसे बंदी बना कर वश में रखना कठिन है, इसलिए पत्नी को निम्नलिखित कार्यो में संलग्न कर देना चाहिए, यथा-आय-व्यय का ब्यौरा रखे, कुर्सी-मेज(उपस्कर) को ठीक करना, घर को सुंदर और पवित्र रखना, भोजन बनाना आदि। उसे(पत्नी) को सदैव पतिव्रत धर्म के विषय में ही बताना चाहिए। इन उपक्रमों से स्त्री का ध्यान इन घरेलु कार्यों में लगा रहेगा और बाहरी दुनिया से वह कटी रहेगी। रस्सी या बांस के खपच्ची से मारना वश में करने का अंतिम उपाय है। अमरनाथ लिखते है----मनु का एकमात्र लक्ष्य स्त्री को पूरी तरह अंकुश में रखना है। इसके लिए साम-दाम-दंड-भेद, हर तरीके के इस्तेमाल का वे सुझाव देते हैं। परंतु प्रेम से, फुसलाकर और सम्मान देकर स्त्री को वश में रखा जा सके तो सर्वोतम है।
क्या हम अपनी दुधारु गाय को प्यार से नहीं सहलाते, क्या आज का मध्यवर्गी.समाज अपने कुत्ते को प्यार से स्नान नहीं कराता, खाना नहीं देता...गोद में नहीं उठाता, घुड़सवार अपने घोड़े पर, किसान अपने बैल पर, धोबी अपने गधे पर चाबुक जरुर चलाता है पर उसकी पीठ भी सहलाता है। जरुरत पड़ने पर उसे प्यार भी देता है। मनु द्वारा स्त्री को दिया गया सम्मान ठीक इसी तरह किसान द्वारा अपनी दूधारु गाय को दिए जानेवाले सम्मान की समान है।
उम्मीद है बहुत हद तक मुन की चाल समझ में आई होगी। कार्ल मार्क्स ने शायद इसीलिए धर्म को अफीम कहा है। हमारे धर्माचार्यों ने स्त्रियों के मामले में हमारे समाज को धर्म का एसा नशा खिलाया कि उसका नशा आज तक नहीं उतरा है।