पारो ही पारो है जहां

Posted By Geetashree On 12:20 AM 4 comments

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हाल ही में सहारा में एक खबर पढी, जो देश के बाकी अखबारो के लिए शायद उतनी बिकाउ खबर ना रही होगी। खबर थी, हरियाणा में मिली बालिका वधू नौ दिनों से गायब थी। यह मामला सबसे पहले सहारा समय पर उजागर हुआ तब जाकर मुकदमा दर्ज हो पाया। उसके परिजन कहते फिर रहे हैं कि लड़की मानसिक रुप से विक्षिप्त है। जबकि मामला कुछ और होगा। पुलिस ने मामला दर्ज किया होगा और घरवालो की बात पर यकीन कर लिया होगा। अगर 12 साल की लड़की की शादी 70 साल के बूढे से कर दी जाए, उसके घर वाले उसका सौदा कर दें या कोई दलाल उसे उठा ले आए और बूढे के हाथो बेच दे तो क्या वो नाबालिग लड़की विक्षिप्त नहीं होगी। क्या वह वयस्क दुल्हनो की तरह विहंसेगी। क्या उम्मीद करते हैं आप उससे। कि वह यह सब चुपचाप स्वीकार ले। खेलने कूदने के दिनों में बीबी बन कर घर संभाल ले या एक लालची बूढे के हवस की भेंट चढ जाए।
बिहार से छपरा जिले के मसरक प्रखंड के घोघिया गांव की 12 साल की आरती की शादी हरियाणा के सोनीपत के नूरनखेड़ा गांव के 70 साल के बलराम से होने के मामले ने एक नया मोड़ ले लिया है। कई दिनों से वह अपने घर से लापता थी। गायब होने की खबर जब सहारा समय चैनल पर चलाई गई तो परिवार वालो ने मामला मसरक थाने में दर्ज कराया। लड़की गायब हो गई और लड़की के नाना को पुलिस का भय सताने लगा। डर से उसने गायब होने की सूचना पुलिस को नहीं दी, एसा उसका कहना है। सच क्या है ये नाना जानता होगा। कौन ले गया होगा उसे। अपने गांव से हरियाणा तक कैसे पहुंची। किसी ने नहीं देखा कि आरती कैसे गई. किसके साथ कई।
लोग तरह तरह की बात करते हैं। आरती की कहानी कम दर्दनाक नहीं है। बताते हैं कि उसकी सगी मां भी उसे गायब करा सकती है। क्योंकि कई साल पहले आरती की मां अपनी बेटी को नाना के पास छोड़कर कहीं चली गई और आज तक वापस नहीं आई है। आरती के पिता से उसकी मां की नहीं बनी। लगभग अनाथ आरती को उसकी किस्मत ने हरियाणा पहुंचा दिया। उसका भी अपनी मां की तरह पता नहीं चलता अगर मामला मीडिया में नहीं उछलता। घरवाले अपने बचाव में कह रहे हैं कि आरती सिर्फ अपना नाम बता सकती है, बस। वह मानसिक रुप से विक्षिप्त है। ना वो बेचने का आरोप लगा रहे हैं ना किसी के द्वारा चुरा कर ले जाने का। नाबालिग लड़कियो गायब होने पर उसके परिजन अक्सर एसे ही स्टैंड लेते हैं। ये कोई नया बहाना तो नहीं।
हरियाणा का कुछ हिस्सा लड़कियों की तस्करी का प्रमुख अड्डा बन गया है। आए दिन वहां बिहार, झारखंड, असम, उड़ीसा के पिछड़े इलाको ले लाई गई बच्चियां, लड़कियां यहां बेच दी जाती हैं। कभी दलाल तो कभी घरवाले तो यहां सौदा करने आते हैं, वे बिकती हैं, बनती है पारो और भूल जाती है हमेशा हमेशा के लिए अपनी मुक्ति का स्वप्न। ना वे यहां से भागकर कहीं जा सकती हैं ना विद्रोह कर सकती हैं। यहां एक बूढे की अय्याशी का सामान बनने के बदले दो जून की रोटी तो मयस्सर हो जाती है। चाहे इसके बदले में इन्हें बच्चा पैदा करने की मशीन बनना पड़े।
इस इलाके में पारो का पता करना लगभग असंभव है। पारो यानी राज्य की सरहद से पार की लाई हुई वह लड़की, बहू, पत्नी जिसे पैसे देकर खरीदा गया हो। मेवात इलाके के खातेपीते परिवारो में भी एसी पारो मौजूद हैं जिन पर परदा डालकर रखा जाता है। उन्हे बाहरी व्यक्ति के सामने आने की इजाजत नहीं है। उनकी व्यथा चहारदीवारी में घुमड़ती है। साधारण परिवारो की पारो भी सामने नहीं पाती। पारो की तलाश में मैं जब वहां भटक रही थी तब मेरे साथ इलाके के कुछ प्रभावशाली सामाजिक कार्यकर्त्ता थे। उन्होंने बताया कि यह इलाका खतरनाक है। अगर उनहें भनक भी लग गई कि आप अखबार में लिखने के लिए उनसे मिलना चाहती है तो आप पर हमला भी कर सकते हैं। मेव समुदाय मरने मारने वाली कौम है। इस भय की वजह से एक स्वांग रचा गया। उन लोगो ने पारो के घरवालो को बताया कि केंद्र सरकार पारो को 500 रुपये का मासिक राशि भुगतान करने की योजना बना रही है। मैंडम पारो का सर्वे करने आई हैं। बिना मिले, बात किए पहचान कैसे होगी। बस...यह स्वांग असर दिखा गया। एक के बाद एक पारो से सामने आने लगी लेकिन तब भी अकेली नहीं। अपने घरवालो से घिरी हुई। जो अकेली मिली उनकी कथा ने झकझोर दिया। मेवात के घासेड़ा कस्बे के बस स्टाप पर हमारी मुलाकात नैंसी से हुई. झारखंड की नैंसी बताती है- “मुझे एक ट्रक ड्राइवर लेकर यहां आया था. उसने 500 रुपये मेरे सौतेले बाप को सौंपा और फिरोजपुर गांव में लाकर किसी के घर छोड़ कर चला गया. वो आदमी मुझसे धंधा करवाना चाहता था. उसने कहा-जा कमा कर ला. मैं यह काम नहीं करना चाहती थी, इसलिए उसके चंगुल से भाग निकली. मैं पारो नहीं बनना चाहती.”मेवात के इस इलाके में ऐसी सैकड़ों पारो हैं. पारो यानी राज्य की सीमा पार से खरीद कर लाई गई वह लड़की, जिसका मनचाहा इस्तेमाल किया जा सकता है. बीवी बनाने से लेकर बच्चा पैदा करने की मशीन या फिर देह व्यापार कराने तक.दिल्ली से सटे आईटी सिटी गुड़गांव के पास है मेवात का इलाका. आधा हरियाणा और आधा राजस्थान में. 6,662 बूचड़खाने वाले इस इलाके को गोकशी के लिए जाना जाता है, टकलू क्राइम यानी सोने की ईंट बेचने के धंधे के लिए जाना जाता है और पारो की खरीद फरोख्त के लिए.यहां गांव गांव में है पारो। मेव, जाट और अहीर बहुल इस इलाके में ‘पारो’ का खूब चलन है. बेचारगी के साथ दलील दी जाती है कि गरीबों को यहां का कोई धनाढ़य व्यक्ति अपनी लड़की नहीं देता. ऐसे में हमारे पास ‘पारो’ के अलावा कोई विकल्प नहीं है.यहां हर कदम पर पारो मिलेगी. कई गांवों में आधी संख्या पारो की है. ये अलग बात है कि लोग अपने घरों में कैद पारो के मुद्दे पर बात करने से बचना चाहते हैं. थोड़ी चालाकी के साथ बात करें या फिर घरवालों को लगे कि बात करने का कोई लाभ मिल सकता है तो लोग थोड़ा-थोड़ा खुलने लगते हैं. तरह-तरह के किस्से आपके सामने आने लगेंगे. झारखंड, आंध्र प्रदेश, असम, बंगाल और देश के अलग-अलग हिस्सों से खरीद कर, बहला फुसला कर या जबरन उठा कर लाई गई हर पारो के पास अपनी-अपनी कहानी है लेकिन सबके हिस्से का दुख एक जैसा है, पहाड़ सा.सलमबा गांव में एक पारो मिली- रुक्सिना। वह असम की हैं. पिछले सात साल से यही हैं. अपने गांव घर का रास्ता भूल चुकी हैं। किस्मत ने उन्हें एक अधेड़ मर्द अकबर की दूसरी बीबी बना दिया है। जब वह हमें मिलीं तो उनकी गोद में एक बच्चा था। बच्चे को गोद में चिपटाए, बेहद डरी सहमी-सी, घरवालो से घिरी हुई। पूछने पर टुकुर-टुकुर मुंह ताकने लगती हैं. साथ में खड़ी एक मेवाती महिला बताती हैं- “इसका मायका गरीब है. रोटी के लाले पड़ते हैं. वहां जाकर क्या करेगी? यहां दो वक्त की रोटी तो नसीब हो रही है ना.”दो वक्त की रोटी के नाम पर रुक्सिना की जिंदगी कैद में बदल गई. भूख का भूगोल जीवन के सारे पाठों पर भारी पड़ गया.पश्चिम की स्त्रवादी लेखिका एलीन मारगन अपनी किताब डिसेंट आफ वीमेन मे एक पुरानी कहावत का हवाला देती हैं, ईश्वर ने कभी कहा था कि जो तुम्हे चाहिए, वह ले लो, लेकिन इसका मूल्य तुम्हे चुकाना पड़ेगा। स्त्री के संदर्भ में यह बात सौ फीसदी सही लगती है। उसने स्त्री रुप में पैदा होने का मूल्य चुकाया और वस्तु में तब्दील हो गई।
यकीन ना हो तो पारो से मिल लें। स्त्री को मादा में बदलते देख सकते हैं।

नूंह कस्बे में कुछ महीने पहले एक और पारो झारखंड से आई है. नाम है सानिया, उम्र कोई 15 वर्ष. ना वह सामने आई, ना उसके घरवालों ने बात की. पड़ोसियों ने बताया कि गरीबी की वजह से 50 वर्षीय मजलिस के साथ मेवात में किसी ने अपनी बेटी नहीं ब्याही. अंततः वह किसी स्थानीय एजेंट के साथ झारखंड गया और अपने लिए कम पैसे में एक पारो का इंतजाम कर लाया. मजलिस ने अपने अरमान पूरे किए और सानिया के अरमानों पर उम्र के इस फासले ने हमेशा के लिए पानी फेर दिया. अनवरी की उम्र है 20 साल. वह मूल रूप से झारखंड के हजारीबाग की रहनेवाली हैं. पिछले साल उन्हें मेवात जिले के घासेड़ा गांव में लाकर एक अधेड़ व्यक्ति के घर में बिठा दिया गया. उन्हें झारखंड से यह झांसा देकर लाया गया कि दूर के रिश्तेदार के यहां मिलने जा रहे है. यहां आते ही अधेड़ व्यक्ति की ब्याहता बना दी गई. जबरन. डरते-डरते अनवरी बताती हैं, “ एक आदमी ने मेरे पति से मेरे बदले दस हजार रुपये लिए।” ये सिर्फ अनवरी की नहीं उनके जैसी अनेक लड़कियों की कहानी है. अरावली पहाड़ियों से घिरे पूरे मेवात क्षेत्र में ऐसी अनेक लड़कियां हैं, जो तस्करी करके यहां लाई गई हैं. यहां उन्हें या तो किसी खूंटे में बांध दिया जाता है या फिर नीलाम किया जाता है. कहीं-कहीं घर वाले धंधा करवाते हैं या दर-दर भीख मांगने पर मजबूर कर देते हैं. ऊपर से देखने पर मामला सिर्फ शादी और लड़का पैदा करने जैसा दिखाई देता है लेकिन अंदर-अंदर मौज मस्ती और कई तरह धंधे के साथ-साथ तस्करी का बहुत मजबूत तंत्र है जिसमें यहां का एक बहुत बड़ा वर्ग लिप्त है. हरियाणा में जब तक लैंगिक असमानता रहेगी तब तक गरीब लड़कियों की अस्मत का सौदा यहां होता रहेगा। कोमा में सोए और स्त्री को मादा समझने वाले समाज पर इसका कोई असर नहीं होगा।